Wednesday, September 22, 2010

आज वो मेरी कब्र पे क्यूँ आए

आज वो मेरी कब्र पे क्यूँ आए
खुद को आँसुओं मे डुबाए
आज वो मेरी कब्र पे क्यूँ आए
जिन्दगी में तो वो मुझे मिल ना पाए

कितनी शांति से मैं यहाँ सो रही थी
आज उनकी अखियाँ मेरी कब्र को क्यूँ धो रही थी
उनको पाने की चाहत में
जिन्दगी को सँवारने की चाहत में
मेरे सारे सपने कहीं खो गए
जब वो किसी और के हो गए
आज वो मेरी कब्र पे क्यूँ आए

इतमीनान से ना जी सकी
सकूँ से ना मार सकी
इतनी शिद्त से मैने उन्हें चाहा था
फिर भी उन्होने मुझे क्यूँ ठुकराया था
जीते जी वो मेरे क्यूँ ना हो पाए
आज वो मेरी कब्र पे क्यूँ आए


मुझे फिर से तंग करने
याँ मेरी खामोशी को तोड़ने
क्या मिलेगा उनको अब मुझसे
मेरी कुछ हड्डियाँ याँ मेरी राख
मरके जिसमे होगये थे मेरे सारे सपने खाक
वो क्यूँ किसी ओर के हो पाए
आज वो मेरी कब्र पे क्यूँ आए

जीते जी मैं उनकी साजिशें ना समझ पाई
उन्हों ने की थी जो मेरे साथ बेवफ़ाई
उन्हों ने क्यूँ मेरे सारे सपनों को खाक में मिला दिया
इस जिन्दगी को राख बना दिया
जीते जी वो मुझे क्यूँ ना समझ पाए
आज वो मेरी कब्र पे क्यूँ आए

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