Wednesday, September 22, 2010

मैं हूँ वोह अनचाही औलाद

मैं हूँ वोह अनचाही औलाद
मैं हूँ वोह अनचाही औलाद,
जिसके लिए नहीं हैं इस दुनिया,
में कोई भी अच्छी सौगात!!
मया ने जानम दिया,
पिता ने कभी गोद में ना लिया!!
पली बड़ी अभावों में,
ना मेरे कोई अपने,
ना मेरे कोई सपने!!
ना मैं किसी के ख्वाबों में,
मैं हूँ वोह अनचाही औलाद!!
बड़ी हुई तो मां बाप ने,
बेच दिया, अनजाने हाथों में!!
भेज दिया, दूर गाँव,दूर देश में!!
यहाँ कोई ना अपना,
रोज़ रात को लुटती रही,
नुचती रही,अनजाने हाथों में,
मैं हूँ वोह अनचाही औलाद!!
जब इस मन ने विरोध किया,
घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया!!
भटकती रही उन अनजाने देश में,
मैं हूँ वोह अनचाही औलाद!!
भूखी रही,जूठन मांजी,
लोगों की जूठन खाई!!
घर में जब की बात,
नहीं दिया किसी ने मेरा साथ!!
आज बस उस खुदा से,
एक ही है आस!!
जल्द से जल्द रुखसत हो जाऊं,
इस बेरहम दुनिया से,
मैं हूँ वोह अनचाही औलाद!

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