Saturday, December 18, 2010

नन्हा फ़रिश्ता!!

शुरू हो चुकी सर्दी !!
ठिठुरन बढ़ रही !!
रात दिन अलाव
जलती !!
मेरे घर की
गली में !!
आता है एक
छोटा बच्चा !!
लगता नन्हा
फ़रिश्ता!!
सब घरों की
गंदगी उठता !!
खाने में
झूठन मिलती
सब घरों की !!
पहनने, ओढने को
उतरन मिलती !!
कभी नंगे पाओं
कभी पहने फटी
चप्पल!!
देखती हूँ उसे
आंसूँ आते हैं
इन आँखों में !!
या खुदा
सुन ले तू ज़रा !!
इन नन्हें फरिश्तों पे
थोडा सा रहम ओं कर्म
कर !!

1 comment:

  1. बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति...........आप ने गरीब और बेसहारा बच्चों को अच्छी अभिव्यक्ति दी है

    सृजन शिखर पर आपका स्वागत है

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