Wednesday, February 16, 2011

जिन्दगी


जिन्दगी तू एक ख्यालात है जिन्दगी
ढले उम्र तो एक सवालात है जिन्दगी

पल खुशियों का हो या गम का मगर
बनाती अज़ाब के हालात है जिन्दगी

सितमगरों के नगर में जो ज़िंदा है
चंद क़दमों के निशानात है जिन्दगी

कभी शबे- बारात कभी शम्मे-रात बन
धूप-छावं की बरसात है जिन्दगी

जिसकी ताबीर होना मुश्किल यहाँ
जहां की आख़िरी बात है जिन्दगी

लम्हे गुज़ारे जब "ज्योति" तेरी कुर्बत में
कठपुतली सी करामात है जिन्दगी

1 comment:

  1. बहुत ही बढ़िया ख्यालात.
    अगर पहले शेर में से 'एक' शब्द हटा दें तो और भी अच्छा होगा .असल में ख्यालात और सवालात बहु वचन हैं.
    कृपया अन्यथा मत लीजिएगा.
    शेर बहुर अच्छा बन पडा है.

    जिसकी ताबीर होना मुश्किल यहाँ
    जहां की आख़िरी बात है जिन्दगी

    सलाम.

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