Saturday, June 25, 2011

याद आया है आज फिर मुस्कराना उनका

पीर में पीर बढ़ाना और तडपाना उनका   
दर्द रह रह के बताता है ठिकाना उनका  

जख्म दिया ऐसा जो कभी ज़ख्म न लगे
याद आया है आज मरहम लगाना उनका  

आज फिर आया है बरसात का रंगीन मौसम
याद आया है फिर तन मन भिगाना उनका  

आज भी कडकी है आसमा में बिजली यहाँ 
याद आया है बाजुओं में छिप जाना उनका

जी में आता है हो जाए एक बार फिर उनका तस्सवुर
मेरी गजलों में अब भी है ठिकाना उनका 

आज फिर रो लेने दो उनकी यादों में "ज्योति" 
याद आया है आज फिर मुस्कराना उनका     

1 comment:

  1. KHUBSURAT, LAAJWAB, OR KYA KAHE. . . BAHUT ACHI LAGI YE GAJAL. . .
    JAI HIND JAI BHARAT

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