मेरे दिल से मेरी ये जाँ निकले
जैसे घर से कोई मेहमाँ निकले
शब् रोती रही शबनम के तले
दर्द आँखों से जब परेशाँ निकले
उनकी फितरत थी एक बेगानों सी
गैरों पे जो वो मेहरबाँ निकले
तोड़ के दिल मेरा वो जब चल दिए
सब कहते रहे वो नादाँ निकले
हाथ खाली थे जब मै आयी थी" ज्योति "
आज अपनों के बीच हम तन्हां निकले
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