Tuesday, May 22, 2012

जिन्दगी के दर्द भरे पन्ने

जिन्दगी के दर्द भरे पन्ने
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वह सिसकती रही घुटती रही 
उम्रभर घरों की ऊँची दीवारों में 
कतर दिए गए थे उसके पर 
कोशिश की उड़ने की कई बार
उसने ऊँचे खुले आकाश में
वह तडपती रही चिलाती रही
बीच सड़क, कोई नहीं आया
समाज का मसीहा उसे बचाने
आखिर उसने दम तोड़ ही दिया
कुछ तमाशबीन लोग आये
उसकी लाश को उठाने, ताकि
आने न लगे बदबू उसकी लाश से

अब वह रूह बन चिल्लाती है
उसकी अस्मत को तार तार किया
उन वहशी दरिंदों ने अपने घर के
उसकी छोटी छोटी बच्चिओं के
जिस्म से खेले खुलकर वे भोगी
जिन्दगी आशाओं की जगह
बन गयी चाहतों की कब्र एक

विरोध किया था उसने बहुत
भेजे जाने का ढाबे पर गोलू को
मिटा दिया गया मासूम बचपन
दिन रात काम करते करते
पड़ गए उसके हाथों में छाले
कोमल हथेलियों में जीवन रेखा
भर गयी काली काली रख से

बड़ी बेटी को लगाया था काम पर
मरती रही वह उन वेशाल्यों में
खाए धोखे उसने सगे बाप से
झोंक दिया गया मासूम कली का जीवन
शरीर की उस दहकती भठ्ठी में
अब रोज़ सजाई जाती हैं महफ़िलें
बाजारों में मासूम शरीरों की

समाज खामोश है ,कान जो बंद हैं
अब ये जिन्दगी खामोश है, मौत जैसी
औरत क्या करे, सोचती है हर मोड़ पर
कब तक तडपे वह भूख से लाचारी से
कब तक पिए वह जीवन का दिया जहर
शिव की तरह कब तक रहे शांत वह
कब तक बांटे अमृत दूसरों के लिए वह
अपने ही स्तनों से , नोचे जाने के लिए

अब औरत ने ठान लिया है वह जिस्म की
दूकान लगाएगी, आज ये ही चलती है
इस से ही घर की, दुनिया की रोज़ी है
अब ये जहर औरत मुफ्त में नहीं पीयेगी
ये जहर बंटेगी, उसकी कीमत भी लेगी
बहुत जहर है औरत के जिस्म में आज
ज़हर खुद नहीं पीयेगी, अमृत पीयेगी वह
ज़हर इन दरिंदों हैवानो को पिलाएगी वह
आज ऐलान करती है औरत समाज में
सब ठेकेदारों को जाग जाओ ! वर्ना ये सपना
सच होगा औरत का , कोख भरी है उसकी
और वह इस को जनम देगी ही, तुम जानते हो

1 comment:

  1. बहुत ही खूबसूरती से जिन्दगी को शब्दों में ढाला है आपने.....

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