Friday, June 21, 2013

आज समय की मांग यही है सभी करें ये विचार 
कैसे मिटे देश में छाया विधर्म और फैला भ्रष्टाचार 
हर एक त्रस्त है देखो है इनकी कैसी मार 
चारों ओर जन जन में मची है हाहाकार 
हर एक उठाये फिरता है अपने फिरके का झंडा 
धर्म के नाम पर हो रही केवल जूतमपेजार 
कोई धर्म नहीं जानता धर्म है सच्चा प्यार 
जैसे खुद को चाहते वैसा हम करें व्यवहार 
राजनिति के चक्र में धर्म हुआ जाता लोप 
राजनितज्ञ धर्म का भी बना रहे व्यापार 
कौन भला सुनाता है रोती धरती की पुकार 
काटे पेड़ वस्न तब नंगी धरती है बेज़ार 
देखो बढ़ा है पारा गर्मी करती है अपना वार 
धरती त्राहि करती बढ़ता जनसंख्या का भार 
उजड़े पर्वत उजड़े वन खेत हुए रेगिस्तान 
सभी ओर हिन्द हमारा होता जाता है लाचार 
धरती धर्म बचाना अपना हो जाए लक्ष्य परम 
ऐसा कर पायें तो होगा सब जन का उधार

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