Saturday, July 20, 2013

भारत भू के अथाह विवेक की कथा सुनाने आई हूँ
मैं आवाहन जन जन को विवेकानंद होने का लायी हूँ
जिसने भारत की खातिर निज सर्वस्व को त्यागा था
गुलामी की जंजीरों में तब जकड़ा ये देश अभागा था
तब अंग्रेजों के शासन में भारत का धर्म कराहता था
झुका हुआ जकड़ी अपनी भारत माता का माथा था
जिसने गुरु को ईश्वर माना उसका गान सुनाने आई हूँ
मैं आवाहन जन जन को विवेकानंद होने का लायी हूँ
देह मिली यह बड़ा साधन, ईश्वर के आराधन को भाई
यही बात विवेकानंद ने थी तब जन जन को समझाई
ईश्वर ही धर रूप मानव का , स्वयं इस धरती पर आये
धर्म यही है एक मानव का , मानव मानव को अपनाए
ऐसी उन्नत प्रखर सोच के आगे शीश झुकाने आई हूँ
मैं आवाहन जन जन को विवेकानंद होने का लायी हूँ
मोक्ष नहीं है बड़ा मानव सेवा से यह उन्हीं ने बतलाया
अपने विशद ज्ञान के आगे था सबका माथा झुकवाया
सत्य सनातन धर्म है अपना ये दुनिया को समझाया
कर मानव तन की सेवा , जीवन का परम लक्ष्य पाया
मानव की सेवा ही है साधना , मैं यही बताने आई हूँ
मैं आवाहन जन जन को विवेकानंद होने का लायी हूँ

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