अरे ! बापू ये क्या किया तूने ?
तुम्हे तो पूजा था हमने प्रभु की तरह
आरती उतारी थी तुम्हारी हमने
दीप धूप थाली में जलाकर
लेकिन कहाँ मालूम था ये हमें
तुम्हें भाति हैं कच्ची कलियाँ देह की
माया और मुक्ति से विरक्ति का
तुम ही तो प्रवचन करते थे सदैव
ये तुम्हारा कलुषित रूप ????
क्या पूजा योग्य है ??
तुम तो ठग ही निकले ..
आस्था और विश्वास के
धर्म के नाम पर ...
हजारों प्रश्न खड़े हैं हमारे सम्मुख
और हम लज्जित हैं
No comments:
Post a Comment